नाभि खिसकना

बिगड़ा स्वाद

आधुनिक जीवन-शैली इस प्रकार की है कि भाग-दौड़ के साथ तनाव-दबाव भरे प्रतिस्पर्धापूर्ण वातावरण में काम करते रहने से व्यक्ति का नाभि चक्र निरंतर क्षुब्ध बना रहता है। इससे नाभि अव्यवस्थित हो जाती है। इसके अलावा खेलने के दौरान उछलने-कूदने, असावधानी से दाएँ-बाएँ झुकने, दोनों हाथों से या एक हाथ से अचानक भारी बोझ उठाने, तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने, सड़क पर चलते हुए गड्ढे, में अचानक पैर चले जाने या अन्य कारणों से किसी एक पैर पर भार पड़ने या झटका लगने से नाभि इधर-उधर हो जाती है। इसे नाभि खिसकना कहते है |

जब भी नाभि अपने स्थान से खिसक जाती है या हट जाती है, तो पेट में बहुत तेज दर्द होता है, बल्कि जब तक नाभि अपने स्थान पर आ न जाए , यह दर्द बराबर बना रहता है और इसके कारन दस्त लग जाते है | आगे को झुकने और कोई वजन आदि उठाने में भी कठिनाई होती है | नाभि को अपने स्थान पर बिठाना चाहिए | जब नाभि अपने स्थान पर आकर सेट हो जाए, तो कुछ खाना भी अवश्य चाहिए | यदि नाभि बार-बार हट जाती है, तो उसे बार-बार बिठाने का प्रयास करते नहीं रहना चाहिए , क्योंकि इससे वो झुठी पड़ जाती है |

        नाभि खिसकने पर इसमे से कोई एक उपाय करे :

  • एक बार नाभि (नाप) बिठाने के पश्चात  दोनों पांवों के अंगूठो में कोई मोटा काले रंग का धागा बांध लेना चाहिए , इससे नाभि का हटना बंद हो जाता है |
  • बीस ग्राम सौंफ को बीस ग्राम गुड में मिलाए और प्रात:काल ख़ाली पेट सेवन करें | इससे अपने स्थान से हटी हुई नाभि यथा स्थान पर आ जाएगी |
  • नाभि पर सरसों का तेल मलने से नाभि के टलने , हटने अथवा खिसकने में लाभ होता है | रोग की तीव्रता होने पर रुई और ऊपर से कपडे की पट्टी बांध ले | कुछ दिनों की इस प्रक्रिया से वर्षों पुराना दोष भी जाता रहता है |
  • बार-बार नाभि खिसकने की शिकायतों को रोकने के लिए पश्चिमोत्तानासन, उत्तान-पादासन, धनुरासन, मत्स्यासन उपयोगी हैं।

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